Saturday 7 April 2012

सेक्यूलर मंगोल राज्य का इतिहास .... और भारत का भविष्य!


मूर्तिभंजक इस्लामिक समाज का एक बहुत बड़ा विरोधाभास है - ईरान में तेरहवीं शताब्दी के एक यहूदी विद्वान् राशिद-उद-दिन की एक विशालकाय मूर्ति . राशिद-उद -दिन ने मंगोल सभ्यता का इतिहास लिखा, और उनका अपना जीवन काल समकालीन इतिहास की एक कहानी बताता है जो भारत के लिए एक बहुत जरुरी सबक है .

मंगोलों ने चंगेज़ खान के समय पूरे एशिया से लेकर यूरोप तक अपना दबदबा बनाया, और मध्य पूर्व एशिया में अपना शासन कायम किया. मंगोल मुख्यतः तांत्रिक धर्म (मंत्रायण) का पालन करते थे जो मूलतः भारत से निकल कर तिब्बत, चीन, जापान और पूरे मध्य एशिया में फैला था. मगोलों ने विश्व का पहला सच्चा धर्म निरपेक्ष राज्य बनाया (भारत के Pseudo Secular राजनीतिक तंत्र जैसा नहीं), जहाँ सभी धर्मों के लोगों को न सिर्फ अपना धर्म मानने की आज़ादी थी, बल्कि सबके बीच स्वस्थ संवाद स्थापित करने का प्रयत्न किया गया. मंगोलों की इस धार्मिक उदारता का सनातन धर्मियों, मंगोल-तुर्क के अदि सभ्यता के लोगों और यहूदियों ने स्वागत किया. इसाई इसके बारे में मिला जुला भाव रखते थे, जबकि मध्य-पूर्व के मुस्लिम इनसे बहुत घृणा करते थे. 

इस दौरान चंगेज़ खान के वंशज (परपोते) आरगुन खान ने एक यहूदी डॉक्टर शाद-उद-दौला को अपना वजीर बनाया. शाद-उद-दौला बहुत कुशल और प्रतिभावान था. उसके समय में आरगुन खान ने बगदाद और तिबरिज़ में कई मंदिर बनवाए और मक्का पर कब्ज़ा करने की योजना बनायीं. उसी समय आरगुन खान बुरी तरह बीमार पड़ा, और मौका देख कर मुस्लिमों ने शाद-उद-दौला की हत्या कर दी. शाद-उद-दौला ने अपने समय में अन्य कई यहूदियों को प्रशासन में स्थान दिया था, उन्ही में से एक थे राशिद-उद-दीन, जो बाद में आरगुन खान के उत्तराधिकारी महमूद गजान के वजीर बने. 

आरगुन की मृत्यु के बाद मुस्लिम और मंगोलों के बीच लगातार संघर्ष चला, और मुस्लिमों ने मंगोल अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए बाज़ार को नकली नोटों और सिक्कों से भर दिया - यह तरकीब जो आज भी भारत के विरुद्ध प्रयोग की जा रही है.  
गजान खान के समय राशिद-उद-दीन ने स्थिति को अंततः नियंत्रण में लिया, अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाया, टैक्स-सुधार किये, और समृद्धि वापस लौटी. लेकिन मुस्लिमों से संघर्ष चलता रहा और और मुसलमान लगातार गजान खान पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाये रहे. अन्तः में स्थिति को शांत करने के लिए गजान खान और राशिद-उद-दीन ने  ऊपरी तौर पर इस्लाम स्वीकार कर लिया, और गजान को अमीर-उल-मोमिन घोषित किया गया. अब मुसलमान गजान खान पर दबाव बनाने लगे की वह मंदिरों, चर्चों, और सिनागोग (यहूदि धर्म स्थल) को तोड़े और दूसरे लोगों को भी इस्लाम स्वीकार करने को बाध्य करे. 
राशिद-उद-दीन के वजीर रहते गजान खान, और उसके भाई ओल्जितु का शासन लगभग शांति और स्थिरता से गुजर गया. राशिद स्वयं को अरस्तु और गजान को अपना Alexander कहता था. राशिद ने दुनिया के कोने कोने से धर्म-गुरुओं और विद्वानों को बगदाद के दरबार में जगह दी. हालाँकि इस्लामिक गुट ने राशिद-उद-दीन पर लगातार आरोप लगाया कि उसने अपना मूल यहूदी धर्म अभी भी नहीं छोड़ा था. 

फिर इल्खानेत वंश के तेरहवें राजा ओल्जितु (धर्म परिवर्तन के बाद मोहम्मद खुदाबन्द) की मृत्यु के बाद इस्लामिक गुट का पूरा नियंत्रण हो गया. राशिद-उद-दीन पर ओल्जितु की हत्या का आरोप लगाया गया और छुप कर अन्दर ही अन्दर यहूदी धर्म से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया गया. उसे कैद कर लिया गया, उसकी आँखों के सामने उसके बेटे का सर काट दिया गया. फिर राशिद का सर काट कर उसके कटे सर को तिबरिज़ की सडकों पर घुमाया गया. इतने से ही राशिद-उद-दीन के प्रति उनकी घृणा ख़त्म नहीं हुई. पंद्रहवीं शताब्दी में तैमुर-लंग के बेटे मिरान शाह ने राशिद-उद-दीन की कब्र खुदवा कर उसकी सर कटी लाश पास के यहूदी कब्रिस्तान में फिंकवा दी.
यह था सेक्युलरिज्म का अंत और इस्लाम के प्रति नरम रवैया रखने का परिणाम. 

हमारे लिए इस कहानी से यही शिक्षा है की एक धर्म निरपेक्ष राज्य इस्लाम का सामना नहीं कर सकता है. अगर एक सेक्युलर राज्य की सीमाओं के बीच बड़ी मुस्लिम संख्या रहेगी तो धीरे-धीरे ये लोग शासन तंत्र पर हावी हो ही जायेंगे. आज हमारे जो नेता इफ्तार पार्टियों में  हरी पगड़ी और गोल टोपी लगाये घूम रहे हैं, कल उन्हें कलमा पढना होगा और सुन्नत करवानी होगी. फिर उन्हें अपने भाई बंधुओं पर तलवार उठाने को कहा जायेगा, और अंत में उनका और उनके बच्चों का वही हाल होगा जो राशिद-उद-दीन का हुआ.

क्या मुलायम सिंह यादव की आँख के आगे यही मुल्ले एक दिन अखिलेश सिंह का सर नहीं काटेंगे? पर इन हिन्दुओं को यह कौन समझाये.....

1 comment:

  1. I agree with U 100% Sir ji.... "ISLAAM & SECULAR IS TWO DIFFERENT WAY."

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