Tuesday 10 July 2012

भारत महाशक्ति; या महाविनाश की ओर! (ब्रेकिंग इंडिया... लेखक - राजीव मल्होत्रा)


अध्याय १ . भारत : महाशक्ति; या महाविनाश की ओर

हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें एक साझा पहचान देती है, एक साझा ऐतिहासिक विरासत और एक भविष्य देती है. हमें यह बोध देती है की हमारा देश और यह संस्कृति इस योग्य है जिसे बचाने के लिए संघर्ष किया जाये. एक सभ्यता को तोड़ना एक व्यक्ति की रीड़ की हड्डी को तोड़ने जैसा है.  एक टूटी हुई सभ्यता टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर सकती है, और एक पूरे क्षेत्र को गहरे अंधकार में धकेल सकती है.

क्या भारतीय सभ्यता में इस तरह टूटने की प्रवृति है? और वो कौन सी शक्तियाँ हैं जो इसे तोड़ने का प्रयास कर रही हैं. वे बाहरी ताकतें हैं, या अंदरूनी? या दोनों? वे कहाँ उपजती हैं, कैसे बढ़ती हैं? उन्हें कौन चलाता है?
यह पुस्तक विशेषतः द्रविड़ और दलित पहचान के सन्दर्भ में इन्ही प्रश्नों को उठाती है -  कि कैसे पश्चिमी शक्तियां इसका दुरुपयोग कर रही हैं.

भारत को जोड़कर रखने वाली केंद्रीय शक्तियां कौन सी हैं? - आर्थिक विकास, व्यापारिक और औद्योगिक विकास, और बेहतर लोकतान्त्रिक शासन....इनके बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा जा रहा है. पर भारत को तोड़ने की शक्ति रखने वाली आन्तरिक और बाहरी विकेन्द्रीय शक्तियों के बारे में कम चर्चा हो रही है. ये  शक्तियाँ  हैं - साम्प्रदायिकता, और सामजिक-आर्थिक असमानता.

किन्तु देश को तोड़ने वाली बाहरी शक्तियाँ ज्यादा जटिल हैं. और वे हमारी आन्तरिक दरारों से एक समीकरण बना रही हैं. एक विश्वव्यापी तंत्र है जो इन आन्तरिक शक्तियों को नियंत्रित कर रहा है. पाकिस्तान हमारे यहाँ अव्यवस्था फैलाने वाला अकेला नहीं है. चीन का माओवादियों से सम्बन्ध, या यूरोप और अमेरिका की धर्मान्तरण करने वाली ताकतें ही अलगाववाद नहीं फैला रही. यह सब तो है ही, पर इससे कहीं ज्यादा है। इन सभी विभाजनकारी शक्तियों का एक गहरा और जटिल अंतर्संबंध है. यह पुस्तक इन्ही अंतर्संबंधों से पर्दा उठाती है. पश्चिम के शिक्षा संस्थान, चर्च  और राजनीतिक शक्तियां भारत की इन विभाजनकारी शक्तियों को पाल-पोस रहे हैं। वे हमारे सामाजिक अंतर्विरोधों का दुरूपयोग कर रहे हैं, और नए अंतर्विरोध पैदा कर रहे हैं.

भारत की विघटनकारी प्रवृतियाँ -
सबकुछ बाहरी ताकतों के मत्थे मढ़ देने का प्रवृति बहुत सामान्य है, किन्तु हमें आत्म मंथन की आवश्यकता है कि हमारी अपनी कमजोरियां और विघटनकारी प्रवृतियाँ क्या हैं? -
1. भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं. सबसे ज्यादा बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जा पाते हैं, और विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष हो रहा है.
2. यहाँ अनेक सामाजिक अन्याय और विषमतायें हैं, कुछ ऐतिहासिक और कुछ आधुनिक। कुछ भारतीय समाज की उपज हैं, और कुछ विदेशी ताकतों द्वारा बोई और सींची गयी हैं.
3. नयी-नयी आर्थिक तरक्की के परिणाम निचले सामाजिक तबके तक नहीं पहुँच पा रहे हैं. जहाँ लाखों भारतीय जनता के ही पैसे से तकनीकी शिक्षा पा कर अमीर बन रहे हैं, वहीँ उनसे कई गुना ज्यादा हैं जिन्हें प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिल रही है. हमारा मध्यम वर्ग जहाँ अमेरिकन बनने की होड़ में लगा है, वहीँ कृषि और जल-संसाधनों के क्षेत्र में निवेश शून्य है. सामान्य स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति दयनीय है.
4. काश्मीर, उत्तर-पूर्व और माओवादी हिंसा से घिरे अनेक भारतीय राज्यों में अलगाववादी आन्दोलन एक बहुत बड़ा खतरा है. जब-तब इस्लामिक आतंकवादी हमले होते रहते हैं, और परिणामस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम हिंसा भड़क उठती है. द्रविड़ और दलित विभाजन के आधार पर दक्षिण में हिंसा फ़ैल रही है, जो इस पुस्तक का विषय है.
5. साइबर स्पेस, जो भारत की शक्ति माना जाता है, भी हमारी सामरिक कमजोरी बन रहा है.  एक रिपोर्ट में भारत को साइबर जासूसी का सबसे बड़ा शिकार बताया गया है. हमारी सैन्य सूचनाएं और राजनैयिक संवाद चीनी जासूसी संस्थाओं के हाथ में आसानी से चले जाते हैं, और माओवादी आतंकियों द्वारा उनका दुरूपयोग होता है.
6. भारत के चारों और असंतुलित और अव्यवस्थित देश हैं, जिनमें से अनेक असफल राज्य हैं.  वहां से हिंसक गतिविधियाँ हमारे यहाँ आयात हो रही हैं, जिनसे निबटने में हमारे संसाधनों का बड़ा भाग लग रहा है. भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में राजनीतिक पार्टियाँ उग आई है, जिससे वोटों का विभाजन हो रहा है, और परिणामस्वरूप हमारी नीतियों में अदूरदर्शिता और अवसरवादिता झलकती है. आप सोचेंगे कि क्या भारत में जरूरत से ज्यादा लोकतंत्र है? या जरूरत से कम शासन व्यवस्था?

साथ ही भारत की कुछ आन्तरिक शक्तियां हैं...

1. अमेरिका में आतंकवाद से लड़ने के लिए पूरे देश का सैन्यीकरण कर दिया गया है, पर भारत में ऐसा नहीं हुआ है. हमारे यहाँ लगातार कई हमलों के बावजूद किलेबंदी जैसा माहौल नहीं है. 
2. हमारे यहाँ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम जनसँख्या है. लेकिन विश्वव्यापी प्रवृति के विपरीत भारत के ज्यादातर मुसलमान अभी तक इस्लामी आतंकी संगठनों के चंगुल से अपने को बाहर रखे हुए हैं, और स्थानीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं. भारतीय इस्लाम पूरी दुनिया में मुसलामानों के अन्य धर्मों से सह अस्तित्व के लिए एक आदर्श स्थापित कर सकता है.
3. भारत की उदार और लचीली संस्कृति इसकी बहुत बड़ी शक्ति है. साथ ही भारत ने आजादी के बाद कई कड़े नीतिगत निर्णय लिए हैं. उदहारण के लिए आरक्षण पिछले साठ वर्षों से अनवरत हर सरकार द्वारा लागू किया गया है, जिसने समाज के गरीब तबकों, विशेषतः दलितों की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार किया है - हालाँकि यह शायद पर्याप्त नहीं है. बहुत सी स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा इस शुन्य को भरने का सराहनीय प्रयास भी हुआ है.

Excerpted with permission from Malhotra, Rajiv and Aravindan Neelakandan, "Breaking India: Western Interventions in Dravidian and Dalit Faultlines," Amaryllis Publishers, Delhi, 2011
Chapter : Superpower or Balkanised War Zone?





भारत के दो चेहरे : अगर यह खाई नहीं पाटी गई तो हमारी आने वाली पीढ़ियां इसी में गिरेंगी. 






विघटनकारी बाहरी शक्तियाँ - क्रमशः अगले लेख में..



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